Saturday, December 8, 2018

तो केहना ...




आज तुमको देखके कोई ग़ज़ल ना बन जाये तो केहना ,
आज तुमको देखके फूल खुद पे ही ना जल जाये तो केहना,
रात में घर से बाहर ना निकलना ऐ मेहजबीन !
तुमको देखके कहीं चाँद ही छुप ना जाये तो केहना ...

सागर से मोती निकालकर इन आँखों में सजा दिये है,
गुलाब की पत्तियों को निचोड़कर इन लबों को भीगा दिये है,
काली घटा ने इन झुल्फों में छुपकर आसमाँ पे बादल जमा दिये है,
ऐसे में कहीं झुल्फें झटक ना देना ऐ गुल-बदन !
नहीं तो छम-छम बारिश ना बरस जाये तो केहना,
आज तुमको देखके कोई ग़ज़ल न बन जाये तो केहना ...

ताज से संगे मर-मर तराशकर इन बदन पे लगा दिये है,
गुलाबी शाम की लाली चुराकर इन गालों पे रंग लगा दिये है,
हर एक क़ातिल अदा ने आज तेरी ओर कदम उठा लिये है,
ऐसे में कहीं किसी को एक नज़र देख ना लेना ऐ नाज़नीन !
नहीं तो नशे में कहीं वो बेहेक ना जाये तो केहना,
आज तुमको देखके कोई ग़ज़ल न बन जाये तो केहना ...

छूके तुम्हें जो निकले हवा का झोंका तो बहार बन जाये,
तुम रख दो जहाँ पाँव जमीं पे वहाँ गुलशन बन जाये,
शर्दी में सुबह की धूप सा रूप तुम्हारा,
पुनम में चमकता चाँद सा अंग तुम्हारा,
ऐसे में कहीं पलकें झुकाके मुस्कुरा ना देना ऐ कमसीन !
नहीं तो किसी भी दीवाने का मन ना मचल जाये तो केहना,
आज तुमको देखके कोई ग़ज़ल न बन जाये तो केहना ...