आज फ़िर वोही सवाल आ गया है सामने,
जुबान चुप हो गई, ना मिले कोई जवाब,
फ़िर अंधेरा छा गया आसमान में ...
ना कोई मंजिल जहाँ में, फ़िर भी चले जा रहे है,
ना कोई साथी है, अकेले हर ग़म सहे जा रहे है,
हर कोना खाली पड़ गया मकान में,
फ़िर अंधेरा छा गया आसमान में ...
तसवीर देख के ना समजे क्या छुपा है रंग में,
खुद को भी ना पेहचाने अब तो हम दर्पण में,
पड़दा पड़ गया है अंखियों के आंगन में,
फ़िर अंधेरा छा गया आसमान में ...
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