आती है वो ओर कुछ केहने, पर बात कुछ ओर केह जाती है,
आँखे उसकी जो साफ केहती है, पर होठों से कुछ ओर केह जाती है ...
रोज़ केहती है वो हमसे, एक बात केहनी है तुमसे,
फिर एक अदा है उसकी, वो आंहे भरती है जैसे दिल धड़कता है जोर से,
फिर वो केहती है हमसे, जो केहना था वो भूल जाती है,
आती है वो ओर कुछ केहने, पर बात कुछ ओर केह जाती है ...
उसने अभी ये कहा नहीं फिर भी क्या हाल हो गये,
अगर आके केह दे हमसे तो खुशी से जाँ ना खो दिये,
उसकी हर अदा हमको कबसे बेक़रार किये जाती है,
आती है वो ओर कुछ केहने, पर बात कुछ ओर केह जाती है ...
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