Tuesday, February 16, 2016

ना जाने क्या है ये मैं कुछ समज नहीं पाती हुँ...

एक पल जो केहना चाहती हुँ , दूजे पल मैं चुप हो जाती हुँ ,
एक पल जो याद रखती हुँ , दूजे पल मैं भूल जाती हुँ ,
हाय ये कैसी उलझन है, बढ़ गई दिल की धड़कन है,
ना जाने क्या है ये मैं कुछ समज नहीं पाती हुँ।



हर पल रहे तेरा ख़याल , कैसा है ये मेरा हाल,
हम न जाने कहाँ खोये है, कितने दिन से जागे-सोये है,
आँखे बंध करू तो तेरे सपने सजाती हुँ, आँखे खोलू तो सामने तुझको पाती हुँ ,
हाय ये कैसी उलझन है, बढ़ गई दिल की धड़कन है,
ना जाने क्या है ये मैं कुछ समज नहीं पाती हुँ।

दुनिया तो केहती रेहती है, मुहब्बतें तो मिलती रेहती है,
इन जवाँ दिलों की कली , हरदम यूँ खिलती रेहती है,
पास जो तु आये मेरे मैं शरमा जाती हुँ, दूर जो तू जाये मेरे मैं तड़प सी जाती हुँ,
हाय ये कैसी उलझन है, बढ़ गई दिल की धड़कन है,
ना जाने क्या है ये मैं कुछ समज नहीं पाती हुँ।

अकेले में बातें मैं करती हुँ, रोती हुँ मैं और हसती हुँ,
दीवारों से कुछ पूछती हुँ, फिर खुद ही जवाब मैं देती हुँ,
दिन को मैं तन्हाईयो से सजाती हुँ, रात को मैं तारो के संग बिताती हुँ,
हाय ये कैसी उलझन है, बढ़ गई दिल की धड़कन है,
ना जाने क्या है ये मैं कुछ समज नहीं पाती हुँ।

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