कोई अतीत की सुनेहरी घड़ी याद आ गई,
की जो हमने बंध आँखे तो उसकी तसवीर सामने आ गई।
सुलगती हुई आग से ज्वाला भड़की,
बेचैन हो गई धड़कने,हमे तो वो ही गर्म बाँहे याद आ गई।
कभी आँखों ही आँखों में हुई थी बाते,
आज इशारो की बात चली तो वो बात करती हुई ख़ामोशी याद आ गई।
कितने भी बहाने करके निकलते थे घर से, मिलने को उनसे पल दो पल,
वो ही झूठ बोलने की नादानी याद आ गई।
ये प्यार करने की रीत भी अजीब है दोस्तों ,चाहकर जो दिलको नहीं समजा सकते ,
आज वो ही दास्ताने प्रीत याद आ गई।
की जो हमने बंध आँखे तो उसकी तसवीर सामने आ गई।
सुलगती हुई आग से ज्वाला भड़की,
बेचैन हो गई धड़कने,हमे तो वो ही गर्म बाँहे याद आ गई।
कभी आँखों ही आँखों में हुई थी बाते,
आज इशारो की बात चली तो वो बात करती हुई ख़ामोशी याद आ गई।
कितने भी बहाने करके निकलते थे घर से, मिलने को उनसे पल दो पल,
वो ही झूठ बोलने की नादानी याद आ गई।
ये प्यार करने की रीत भी अजीब है दोस्तों ,चाहकर जो दिलको नहीं समजा सकते ,
आज वो ही दास्ताने प्रीत याद आ गई।
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