Saturday, January 16, 2016

ऐ जिंदगी ...




मैं तुझको ढूंढता रहा ऐ जिंदगी , तु मुझको ढूंढ रही थी,
हम थे एक दूसरे के नजदीक ही पर फिर भी अब तक दुरी रही थी।

शायद वक़्त की दिवार थी हमारे बीच , या तो इशारो की कमी रही थी,
दिल तेरी धड़कनो को समज नहीं सका,जो अब तक दिल में ही थमी रही थी।

तुमसे मिलकर मुझे ये एहसास हो गया की मेरी दुनिया अधूरी रही थी,
गुलशन में कलियाँ तो थी पर फिर भी खुशबु के बिना वो पूरी नही थी।

एक फाँसला था आज तक , दो राहे अपनी मंजिले ढूंढ  रही थी,
कितनी भीड़ में ये अंखिया अपनी नजर का नजारा ढूंढ रही थी।

आज सोचता हु मैं की क्यों न जाने उस पल हर घडी अनजान रही थी,
मन तो शायद पुकार रहा था पर हमको ही आवाज़ नहीं आ रही थी।

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