Sunday, January 3, 2016

ऐ गुलबदन




तेरे बारे में हमने लिखने की बहुत कोशिश की,
पर जो भी शब्द हमारे जुबाँ पर आया उस हर शब्द में हमे कुछ कमी सी लगी,
लोग कहते है की हम शायर है, पर तेरे सामने ऐ गुलबदन,
मुझे मेरी हर शायरी कुछ अधूरी सी लगी...

कभी दिन में बैठे, कभी रात में बैठे,
कभी सुबह को तो कभी शाम को बैठे,
कभी उगते सूरज की किरणों को देखा,
तो कभी ढलते सूरज की लाली को देखा,
सब जाने क्युँ तारीफ़ करते है पूनम के चाँद  की,
हमे तो हर चीज़ आप की एक हसी के सामने फीकी सी लगी...

दिल के समंदर में लहरें उठती रही,
हम कागज़ पे लिखते रहे और मिटाते गये,
क्यूंकि मन में एक उलझन चलती ही रही,
तुम्हे परियों की रानी कहु बसंत की बहार कहु के फूलों की मलिका कहु,
तुझे कहने के लिए तो हमे हर लब्ज़ में कुछ नमी सी लगी...


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