कभी दिल की धडकनों में ढूंढते है, तो कभी सपनो में ढूंढते है,
कभी परायो में तो कभी अपनों में ढूढ़ते है,
लोग तो गुजर जाते है कितने हमारी गलियों से,
हम तो तेरी ही आहट हमारी गलियों में ढूंढते है...
गुलाब बिछादु आँगन में, तारे सजा दू दामन में,
तू कहे तो इन्द्रधनुष के सात रंग लगा दू सावन में,
कभी फूलों की खुशबु से पूछा, तो कभी बसंत की बहार से पूछा,
क्या तुम्हारा नाम है, कौन से नगर तुम रहती हो,
क्या तुम परियों की रानी हो या हो कोई अप्सरा,
पर क्यूँ न जाने हमे तुम अपनी-अपनी सी लगती हो,
फिर से एक झलक दिख जाये वो संगेमरमर से लिपटे तन की,
फिर से खुशबु महसूस हो जाये वो ही हसीं गुलशन की,
हम तो आँखे टिकाये रास्ते पे कर रहे है इंतज़ार,
कब आये हमारे नसीब में सुबहा तुम्हारे दर्शन की....
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